शबे बारात मुसलमान क्यूं मनाते हैं
माहे शबान की 15वी रात को शबे बारात कहा जाता है सब का माना है यानी रात बारात माना है बड़ी या रिहाई होना इस रात मुसलमान तौबा करके अपने गुन्हाओ की माफी मांगते हैं और अल्लाहतबारक वा ताला की रहमत से बेशुमार मुसलमान जहन्नम से निजात पाते हैं इसी लिए इस रात को शबे बारात कहा जाता है इस रात लैलातुल मुबारका यानी बरकतों वाली रात कहा जाता है और इस रात को लैलातुल रहमा यानि रहमत नाजिल होने वाली रात भी कहा जाता है हजरते अता बिन यसाद रजीअल्लाह ताला अन्हु फरमाते हैं कि लैलातुल कद्र बाद शाबान की पंद्रवी तारीख सबसे अफजल कोई रात नहीं इरसादे तबारिकताला की कस्म है कि उस रौसन किताब की बेसक इसे हमने बरकत वाली रात में उतारा है इस रात से मुराद सब ए कद्र या सब ए बारात है इन आयात की तफसीर में हजरते अक्रमा रजी अल्लाहताला अन्हू और बाज दीगर मुफस्रीन ने बयान किया है कि लैलातुल मुबारका की पंद्रहवीं शाबान की रात मुराद है इस रात मे जिंदा रहने वाले, होने वाले, इंतेकाल करने वाले, और हज करने वाले, सब की नामो की फेहरिस्त तैयार की जाती और उसकी तामीर में जरा सी भी कमो बेसी नहीं होती हजरते आयसा सिद्दिका रजी अल्लाह ताला अन्हुं फरमाती है की रसूले करीम सल्लल्लाह ताला अलयही वसल्लम ने फ़रमाया क्या तुम जानती हो की शाबान की पंद्रहवीं सब को क्या क्या होता है मैने अर्ज किया या रसूल्लाह ताला अलयही वसल्लम आप फरमा दीजिए । इरसाद हुए की आइसा फिर साल मे जितने लोग पैदा होने वाले होते हैं वो सब इस रात लिख दिए जाते हैं ऐसा कभी भी, साल में जितने लोग मरने वाले लोग होते हैं वो भी इस रात मे लिख दिए जाते हैं और इस रात मे लोगों के साल भर के आमाल उठाए जाते हैं और इसमें लोगों का मुकर्रर रिस्क भी उतारा जाता है हजरते अता बिन यसाद रजीअल्लाह ताला अन्हु फरमाते हैं की शाबान की पंद्रहवीं रात में अल्लाह तबारक वताला मलकुन मौत को एक फेहरिश देकर हुक्म फरमाता है जिन लोगों के नाम इस फेहरिस्त में लिखे हैं उनकी रूहों को इस साल में मुकर्रर वक्त में कब्ज कर लेना और उस वक्त लोगों के हालात ये होते हैं कि कोई बागों में दरख़्त लगाने के फिक्र में होता है, कोई सादी की तैयारी में मसरूफ होता है, कोई घर बनवा रहा होता है, यहां की उनके नाम मुर्दों की फेहरिस्त में लिखे जा चुके होते हैं हजरत उसमान बिन मुहम्मद रजी अल्लाह ताला अन्हु से मरवी है की सरकार मदीना सल्लल्लाहोताला अलयही वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि एक शाबान से दूसरी शाबान तक लोगों की जिंदगी मुनकता करने का वक्त इस रात मे लिखा जाता है यहां तक इंसान सादी बेयाह करता उसकी बच्चा पैदा होते हैं हालाकि उसका नाम मुर्दों की फेहरिस्त में लिखे जा चुके होते हैं क्योंकि ये रात गुजरे हुए साल के तमाम अमाल बारगाहे इलाही में पेस होने और साल में मिलने वाली जिंदगी और रिस्क बगैर हिसाबो किताब की रात है, इस लिए इस रात में इबादते इलाही मशूल रहना रब्बे करीम की रहमतों के मुस्ताहिक होने का बाइस है और सरकार ए दो आलम सल्लल्लाहताला अलयही वसल्लम की यहीं तालीम है हजरत ए अबुबकर सिद्दिक रजी अल्लाहताला अन्हु फरमाते है आका और मौला सल्लल्लाहताला अलयही वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की शाबान की पंद्रहवीं सब में अल्लाहो तबारक वा ताला आसमानी दुनिया पर अपनी सान के मुताबिक जलवा गर होता है और इस सब में हर किसी की मगफिरत फरमाता सिवाए मुस्रिक और बुग्ज़ रखने वाले लोगों के सब ए बारात मुसलमानों की मगफिरत की रात है और इसकी एक खूसियात ये है की ये रब्बे करीम की रहमतों के नुजूल और दुवाओं की कुबूल होने की रात है हजरत रजी अल्लाह ताला अन्हु से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहता अलयही वसल्लम जब शाबान की पंद्रहवीं सब हो तो रात को नमाज कायम करो और दिन को रोजा रखो क्यूकि गोरूब आफताब वक्त से ही अल्लाह तबारक वा ताला की रहमत आसमानी दुनिया पर नाजिल होती है अल्लाह तबारक वा ताला इरसाद फरमाता है की है कोई मगफिरत तलब करने वाला कि मैं उसे बक्स दूं है कोई रिस्क मागने वाला कि मैं उसे रिस्क अता करूं है कोई मुसीबत जदा कि मैं उसे मुसीबत से निजात दूं ये ऐलान तुलुबे फज्र तक होता रहता है वैसे तो ये ऐलान अल्लाह तबारक वा ताला की तरफ से हर रात होता है लेकिन रात के आखरी हिस्से में जैसा कि आवाजे सब ए दारी की फजीलत है इस उनवान के तहत हदीसे पाक तैहरीर की गई है कि सब ए बारात की खास बात ये है कि उसमे ऐलान गुरुबे आफताब से ही शुरू हो जाता है बोया स्वालेहीन और सब्बे दार मोमिन के लिए तो हर रात सब ए बारात है मगर ये रात खता कारों के लिए रहमत और अता और बख्सिस और मगफिरत की रात है हमें चाहिए कि हम अपने गुनाहों और नदामत के आंसू बहाए और रब्बे कदीर से ये दुआ करे की दुनिया और अखिरत की बलाई मांगे सरकार ए दो आलम सल्लल्लाहताला अलयही वसल्लम ने फ़रमाया शाबान मेरा महीना है और रमजान मेरी उम्मत का महीना है नबी करीम सल्लल्लाहताला अलयही वसल्लम इरशादे ग्रामी है जिन लोगों की रूह कब्ज करनी होती है उनकी नामो की फेहरिस्त माहे शबान में मलकुन मौत को दे दी जाती है मोहतरम ख्वातीन और हजरात इस लिए जितना हो सके इस सब में शब्बेदारी कीजिए नवाफिल अदा कीजिए और अल्लाहो तबारक वा ताला से अपनी गुनाहो से मगफिरत मांगिए और हम सब को समझने और नेक अमाल की तौफीक अता फरमाएं और अल्लाह हम सब के गुनाहों से बख्सीस दे और हम सब को नेकी करने की तौफीक दे।