Zakhmi Badan Ko Zanzeero Ne Khaya Hai | Mohammad Raza Gopalpuri Noha 2019 | Sahadat Imam Sajjad | Islamichak

Zakhmi Badan Ko Zanzeero Ne Khaya Hai | Mohammad Raza Gopalpuri Noha 2019 | Sahadat Imam Sajjad | Islamichak

 Zakhmi Badan Se Noha Lyrics Hindi 2019

ज़ख्मी बदन को जंजीरों ने खाया है...2

 परदेसी बीमार पर ज़ुल्म ये कैसा है |

1. ज़ियारत ए नाहिया में है ये फरमान ए इमाम ए ज़मा,

मेरा सलाम उसपर जो था पबंद ए तौक ए गेरान,

ये ज़ुल्म ख़स्तातन पर बीमार के बदन पर,

कैसा सीतम सज्जाद पे हाय ढाया है।

ज़ख्मी बदन को जंजीरों ने खाया है...2

2. हथकरहयां और बेरियाँ और कहां आबिद मुज़्तर,

काफ़ला लेकर कैसे चले पहने हुए तौक़ ओ लंगर,

खारों से पुर हैं राहें लब पर फकत है आहें, 

पुस्त ए हाजिन और शिमर ए लाएन का कोरहा है। 

ज़ख्मी बदन को जंजीरों ने खाया है...2 

3. पीठ है ज़ख्मी डरों से और तलवों में छाले हैं,

कैसे चले नंगे पांव रास्ते कांटों वाले

खाना है और न पानी कैसी है महमानी,

ज़ुल्म ओ सेतम ने चारो तरह से घेरा है।

ज़ख्मी बदन को जंजीरों ने खाया है...2

4.साथ में फुप्यां माये हैं और मजलूमा सकीना हैं 

अब न चाचा की गोदी है और न पीदर का सीना है,

शिम्र ए लाईन ने मारे जिसके काई तमाचे, 

अहले हरम पे रंज का बादल छाया है

ज़ख्मी बदन को जंजीरों ने खाया है...2

5. आल ए नबी का गम कोई पुछे आबिद ए मुज़्तर से,

ज़ख्मी है हर बीबी का सर अहल ए जफ़ा के पत्थर से,

रंगी हैं खून से चेहरे ए और बाल सर के बिखरे,

मजलुमो की आह ओ बोका पर पहरा है।

ज़ख्मी बदन को जंजीरों ने खाया है...2

6. धूप की शद्दत लोहे को किस दरजा गरमी है,

और लोहे की गरमी फिर ज़ख्मो को झूलसती है,

तप्ती हुई जमी है ठंडक कहीं नहीं है, 

प्यासे है और आग उगलता सहरा है। 

ज़ख्मी बदन को जंजीरों ने खाया है...2

7. खैमा ए दुश्मन के साये में जो जरा बैठे आकार,

मार के कोरहे ज़ालिम ने कर दिया साये से बहार, 

ये ज़ुल्म महमा पर बीमार ओ नतावन पर,

क़िस्मत में अब जाने क्या क्या लिखा है।

ज़ख्मी बदन को जंजीरों ने खाया है...2

8. पैकर ए सब्र ओ रज़ा अब भी ज़ुल्म ओ सेतम के मुकाबिल है,

शाम के ज़िंदान में भी पबंद ए तौक़ ओ सालसिल है,

लो मर गई सकीना बिन्त ए शाह ए मदीना,

मजलूमो की आहो बोका पर पहरा है।

ज़ख्मी बदन को जंजीरों ने खाया है...2

9. पांव हैं बिरही में जकरे हाथो में हाथकार्यां है,

कैसे बहन को दफनाए सोच  के आबिद गिर्या है,

लाशा है एक बहन समान नहीं कफ़न का, 

हाय कोई कंधा भी ना देने वाला है।

ज़ख्मी बदन को जंजीरों ने खाया है...2

10. यूं ही असीरे रंज ओ महन बरह महीने था सज्जाद,

पुछो इमाम ए जमाना से कितनी अज़ीयत थी शमशाद। 

उतरे न तौको लंगर दिल पर घमोन का नश्तर 

आंख में आसू लब पे बहन का नौहा है। 

ज़ख्मी बदन को जंजीरों ने खाया है...2 

  • Mohammad Raza Gopalpuri Noha Lyrics Hindi

Zakhmi Badan Se


YouTube Channel Subscribe Now friends #AllVideosfz  Facebook Page /@faizan7388

Post a Comment

Previous Post Next Post