अर्तुग्रुल गाजी की रियल हिस्ट्री History of Ertugrul Gazi
Ertugrul Gazi Ka Waqia
ये वाकिया सुरु होता है 13वी सदी से जब चंगेज खान के मंगूली सेना पूरी दुनिया में लूट मार करती हुए मुसलमानों और यूरोप के कई मुल्को पर फ़तेह हासिल कर रही थी उस वक्त की ये वाकिया था मंगोल व्य्ह्सी दरिन्दे थे जहाँ भी जाते खून की नदिया बहा देते थे न बच्चो का लिहाज करते और न बूडो का लिहाज करते थे और न ही औरतो को छोरते थे हर जगह तबाही फैलाना ही इन मंगूलो का मकसद हुआ करता था जब ये मंगूल हरीजिन के इलाके में पहुचे तो यहाँ एक कबीला हुआ करता था जो इस इलाके को छोर कर दर के मारे भाग गया उस कबीले का नाम था काई कबीला इस कबीले का सरदार था सुलेमान शाह सुलेमान शाह के चार बेटे थे तीसरे नंबर बेटे का नाम अर्तुग्रुल गाजी यही यो बेटा था जो ये अर्तुग्रुल गाजी के नाम से सीरियल बनाया गया है ये मुजवाद हस्ती है इसमें इनके किरदार को दिखाया गया है सल्जुक की सल्तनत की सहजादी हलीमा सुल्तान और उसके भाई और उसके बाप को ईसायियो ने कैद कर लिया था जंगल के रास्ते इसाई इसको महल ले जा रहे थे तभी लोग अर्तुग्रुल गाजी के हत्ते अ गये अर्तुग्रुल ने सहजादी हलीमा और उसके बाप भाई को इसाईवो से छुडवा लिया बस यही से सुरुवात होती है इस जबाज दिलेर अर्तुग्रुल गाजी की |
इस घटना के बाद कई बार इस कबीले पर इसाईयो की तरफ से परेसनिया आती थी मगर अर्तुग्रुल ने बड़ी ही दिलेरी के साथ इन परेसनियो से डट कर सामना किया अर्तुग्रुल का सबसे दिलेरी और होस्यारी का काम उस कीला को फ़तेह कर लिया जहाँ मुसलमानों के लिया जाल साजिस बुने जाते थे इस किले में बड़े बड़े इसाई पादरी मिलकर मुसलमानों के खिलाफ आर्मी जंग की तय्यारी कर रहे थे मगर अर्तुग्रुल गाजी अपनी बहादुरी के साथ इन तमाम के इरादों पर पानी फेर दिया जब अर्तुग्रुल ने इस किले को फ़तेह किया तब पूरी मुस्लिम और गैर मुस्लिम सल्तनत में अर्तुग्रुल की देलेरी और बहादुरी का डंका बड़े जोरो सोर से बजने लगा और यही से अर्तुग्रुल नाम का एक एसा तूफान उठा की पूरी दुनिया में दुस्मनाने इस्लाम इस तूफान में उरते चले गए|
इक बार की बात है दरियाए फाराद को पार करते हुए काई कबीले के सरदार यानि अर्तुग्रुल के बाप यानि सुलेमान शाह कुछ बीमारी की वजह से दरिया में घोड़े से गिरे और इंतेकाल कर गए इसके बाद कबीले वालो ने अर्तुग्रुल गाजी को अपना सरदार चुन लिया क्यूंकि की जाहिर है अर्तुग्रुल जैसा बहादुर और जहीन सख्स उस कबीले में उसके बाप के बाद कोई भी मौजूद नही बचा था अर्तुग्रुल की सरदारी में उसका कबीला खूब तरक्की किया उस तुर्की कबीले ने अनातोलिया की तरफ रुख कर लिया अर्तुग्रुल के दो भाई उनसे अलग हो गए जो की अर्तुग्रुल अपने छोटे भाई के साथ सफ़र पर निकल पड़ा बीच सफ़र में देखा दो सेनाये जंग कर रही है एक सेना बड़ी कमजोर है और दुसरी सेना बड़ी मजबूत है कमजोर वली सेना हरने की कगार पर अ पहोची थी तो अर्तुग्रुल ने हारती हुए सेना का साथ दिया ये जंग थी सल्जुक और मंगोलों के बीच मगर ये बात अर्तुग्रुल के इल्म में नही थी मंगोलों की फौज अलाउद्दीन की सल्जूक वाली फौज को शिकस्त देने वाली थी की अचानक अर्तुग्रुल अपने 404 बहादुर वली फौजियों के सल्जुक की फौज में मिल गए और मंगोलों को इस तरह मारा की मंगोल अपने ही सिपाहियों की लास मैदान में छोड़ कर भागे अलुद्दीन कुछ डेर पहले मंगोलों के हाथो अपनी शिकस्त यकीनी समझ रहा था मगर अर्तुग्रुल की मदद से इतना खुस हुआ की अर्तुग्रुल अर्तुग्रुल सहर अंकारा में जागीर अता की अर्तुग्रुल एक बेमिसाल और समझ दार सरदार था उसकी समझ दारी पूरी दुनिया में फ़ैल गयी थी दुस्माने इस्लाम इसकी बहादुरी को देख कर हर वक्त परेसान रहते थे मुसलमानों की सल्जूक सल्तनत उस वक्त बहुत कमजोर हो गयी थी एक तरफ रूमी फौज दूसरी तरफ मंगोल इन दोनों के बीच सल्जूक सलतनत पिसी वहाली जा रही थी अनकरीब था की ये सल्तनत ख़तम हो जाती मगर जिस दिन से अर्तुग्रुल गाजी इस सल्तनत में आये उसी दिन से ये सल्तनत खूब परवान चड़ने लगी अर्तुग्रुल अपने निडर बहादुरी से रुमियो और मंगोलों को शिकस्त देता चला गया और अपने सल्तनत को बढाता चला गया उस वक्त कोई एसा बादशाह नही था की कोए अर्तुग्रुल को टक्कर डे सके और फिर एक वक्त ऐसा आया की अपनी वफात से पहले बहुत ताकत वर हो चुका था 1958इसवी में एक लड़का पैदा हुआ जिसका नाम रखा गया उस्मान ये वही उस्मान था जो तुर्की की सल्तनत सल्तनते उस्मानिया कहा गया उस्मान भी अपने बाप्प की तरह बहादुर जहीन और निडर था
उस वक्त सल्तनते उस्मानिया आज के चालीस देश मौजूद हैं यानि 40 देशो पर अकेले हुकूमत की ये सल्तनत 1923 तक लगातार बनी रही कई सुल्तान आये इस सल्तनत को कायम रखा मगर अफ़सोस 600 साल बाद बुराइयों और कमजोरियों का सीकार होने लगी 1923ईसवी में इस सल्तनत को इकदम से ख़तम हो गई जब पहला वर्ल्ड वोर हुआ तो दुनिया दो हिस्सों में तब्दील हो गई एक तरफ कुछ देश बर्तानिया के साथ हो दूसरा तुर्की के साथ कुछ देस थे
मगर उस वक्त का तुर्की का सुल्तान था उसको साजिस के तहेत फसा कर देश से निकाल दिया गया
सबसे बड़ी और घातक सर्त ये थी की 100 साल तक तुर्की अपनी ही जमीन पर खुद से तेल या पेट्रोल ऐसी कोई भी चीज नही निकाल सकता तुर्की को तेल और पेट्रोल दुसरे देशो से खरीदना पड़ेगा और सात ही साथ तुर्की की बंदरगाह परभी पाबन्दी लगा दी गई जो की एशिया और यूरोप को आपस में जोडती थी इसे अल्मियत करार डे दिया गया यानि इस बंदरगाह से कोई भी जहाज गुजर सकता है और किसी से किसी तरह का टैक्स नही उसूल सकता