islam me new year manana kaisa hai | Happy New Year Celebration | हैप्पी न्यू ईयर मनाना इस्लाम में कैसा है बहुत अहेम मसला जरूर समझे

islam me new year manana kaisa hai | Happy New Year Celebration | हैप्पी न्यू ईयर मनाना इस्लाम में कैसा है बहुत अहेम मसला जरूर समझे

इस्लाम में नया साल मनाना कैसा जरुर पड़े

हैप्पी न्यू इयर का जसं मनाना या एक दुसरे को मुबारक बाद देना सरियत में इसकी क्या मायने है|

गुजारिस है बहुत अहम जरूरी मसला है ध्यान से पड़कर इस मसले को समझ ले.

इसके मोतालिक ये समझ ले की नया साल के अहमद पर एक दुसरे को मुबारक बाद देना खैरो बरकत की दुआ देना और नेक तमन्नाओ और नेक खोवाइश का इजहार करना इसमें सरहंत कोई खराबी नही है यानि ये एक मोबाह काम है अगर कोई करे तो भी कोई हर्ज नही है अगर कोई न करे तो भी कोई हर्ज नही है|

अब इसके मोतालिक कुछ लोग कहते हैं कि हैप्पी न्यू इयर का जसं मनाना या एक दुसरे को मुबारक बाद देना ये गैर कौम का तरीका है और वो लोग कह्ते है (मंतस्बह बे कौमिन फौहा मिन्हुम) जो गैर कौम के मोसह्बत अख्तेयार करते हैं वो उनिः में से है लिहाजा गैर कौम की अलामत है और इसे मनाना मुसलमानों के लिए हराम है इस कदर के फतवे बाजी लोग करते हैं|

जबकि हदीसे मुबारका को उह्नो ने सही तरीके से समझा नही (मंतस्बह बे कौमिन फौहा मिन्हुम) इसके मुताल्लिक जो तसरीह है आप उसे समाप्त करे (सय्यदी सरकार आला हज़रत मुज़द्दिद दीन ओ मिल्लत इमाम इसके मुहब्बत इमाम अहमद रजा खा खाज्ले बरेलवी अलय्ही रहमतो रिजवान) इसके तस्रीक करते हुए फरमाते है की इसके तीन सुरत ए हैं|

गैर कौम के मुसह्बत ए तीन सूरत ए है

1.    जो चीज है वो किसी की मजहबी अलामत हो. (अब न्यू इयर इसलामी हो या हिजरी वाला साल हो या फिर इसवी वाला साल हो ये किसी कौम या मजहबी अलामत नही है) इसी तरह दूसरी तस्रीक करते हुए फरमाते हैं.

2.    कौमी अलामत हो. (जो चीज हो कौमी अलामत होनी चाहिए और साथो साथ मुसलमानों के दरमियान वो चीज रईज भी न हो)

3.    उस कौम की मोहब्बत की वजह से उस अलामत से अख्तियार किया जाये. (अब हम जब न्यू इयर को देखते हैं तो न वो किसी की मजहबी अलामत है न किसी की कौमी अलामत है और न ही जो लोग मना रहे हैं वो किसी मोहब्बत में किसी कौम की मोहब्बत में मना रहे हैं बल्कि साल ख़तम हुआ है और नया साल आया है तो वो लोग नए साल की खुसी मना रहे हैं जबकि हमारा तसौउर ये होना चाहिए की जिंदगी का एक साल कम हो गया है)

लेकिन:.

इसका एक पहलु ये भी है की जब नया साल आया है इस नए साल में हम नए अज्म के साथ नए नए काम करेंगें और जो गुनाह गुलिस्ता साल या इससे पहले हुये हैं उनको हम छोड कर हम नए साल की सुरुवात में हम एक अच्छी जिंदगी गुजारेंगे इस्लामी जिंदगी गुजारेंगें और इसी नियत से मुबारक बाद देते हैं.

किसी को मुबारक बाद कब दी जाती है जब खुसी होती है तब दी जाती है अगर कोई बंदा happy new year कहता है किसी को मुबारक बाद देता है एसा नही है की किसी कौम की अलामत है और वो कर रहा है किसी कौम की ये न अलामत है और न किसी का मजहबी सयार है और न ही ये किसी की मोहब्बत में कोई कर रहा है किसी कौम की मोहब्बत में बल्कि सब के दरमियान रईज हैं हकीकत ये है की ये दूसरी जगहों से हमारे यहाँ Transfer हुआ है अब हमारी कौम के लोग दो हिस्सों में बट गए हैं|

Ø कुछ वो लोग हैं जो नही मनाते (बहुत अच्छी बात)

Ø लेकिन जो मनाते हैं (उनके लिए सरियत क्या कहती है सरियत यही कहती है की खैरो बरकत की दुआ करना मुबारक बाद देना नए साल की अहमद पर बिला सुबह मुबाह काम है और इसमें कोई हर्ज नही है)

एक हदीसे मुबारका में आता है (तबरानी अलौसत हदीस न. है 6241 की जब नए साल की अहमद हुआ करती थी तो सहाबा इकराम नए साल की अहमद पर या नए महीने के अहमद पर वो ये दुआ पड़ा करते थे. (ए अल्लाह इमान और सलामती के साथ इमान और अमन इस्लाम और सलामती के साथ और अपनी रजा मंदी के साथ और सय्तान के मकरू फरेब से छुटकारा के साथ नए साल या नए महीने में दाखिल फरमा)

तो इससे ये साबित होता है कि ये मोबाह काम है कोई खराबी वाली बात नही है अगर कोई कर रहा है अब जो लोग फतवा दे रहे हैं हराम काम और नाजयेज एसा है वैसा है तो उसमे जो जो गुनाह का काम कर रहे है यकिंनन गुनाह का काम कर रहे हैं इसलिए जो इसको अलग रखे और उसके अंदाज को अलग रखे अंदाज में जाएँगे तो देखेगें की इसमें ढोल बाजे पटाखे आतिशबाजी तो ये सब चाहे वो साल की अहमद पर खुसी मना रहे हो या बच्चे की पैदाइस पर या फिर सादी बियाह या किसी मोके पर ये सारे काम वैसे ही हराम है बिलकुल इसे सरियत में करने की इजाजत नही है  

Islam me new year manana kaisa hai

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