सब ए बारात में इबादत कैसे करे
नमाज ज्यादा पड़े, कुरान ज्यादा पड़े कौन सी नमाज पड़े क्या कजाए उमरी पड़ सकतें हैं या नफल नमाजे पड़ना ज्यादा बेहतर है बहुत कन्फ्यूजन बनी रहती हैं आम लोगों के जहनो में आखिर सब ए बारात पे इबादत करें तो कैसे करे, जैसे गलत सलत चीजे social media पे चल रही है कि बैर के पत्तो से गुसुल करो फिर मगरिब के बाद 6 रकात पड़ो है न ये वजीफा करलो वो अमल करलो फिर लोग इसमें उलझ जाते हैं इसी लिए सही बात आप लोगों बताना चाहिए।
सब ए बारात का मतलब है जहन्नम से बरी होने की रात अल्लाह की मगफिरत हासिल करने की रात तो इस रात में इबादत करने को अल्लाह ताला पसंद फरमाता है जब हम माफी अल्लाह से मांगते हैं तो अल्लाल ताला माफ फरमाता है, मगफिरत अता फरमाता है अल्लाहताला को इस रात में बंदे को आंसू बहाना बहुत पसंद है अल्लाहताला को इस रात में रोना, गिरगिराना, तौबा और इस्तक्फार करना बहुत पसंद है इसी लिए अल्लाहताला ने (जैसी कम्पनी ऑफर निकालती है बंपर सेल आधी रेट में ले जाओ) अल्लाह ताला ने जूमे के दिन को खास बनाया, रमादान के महीने को खास बनाया, पूरे साल में अल्लाहताला ने कुछ दिन कुछ महीने कुछ राते ऐसी रखीं हैं जिसमें अल्लाह ताला की तरफ़ से खास रहमते बंदों के ऊपर नाजिल होती हैं उसी में से एक रात है सब ए बारात तो सब ए बारात ये एक इबादत कि रात है आप बस ये उसूल आप जहेन में रख ले की ये इबादत की रात है तो आप समझ गए न तो इबादत की जितने भी काम हैं आप सब ए बारात की रात करें इधर उधर जानें की कहीं जरूरत नहीं है कोई वजीफा कोई टोना कोई तटका कुछ भी करने की जरूरत नहीं है जो इबादत के सादा सिंपल काम हैं कुराने मजीद पड़ना, नमाजे पड़ना, अल्लाह से दुआ करना, तौबा इस्तकफार करना, दुरूद शरीफ पड़ना, जितने भी इबादात के काम हैं वो आप करिए
Sab e Barat का रोजा
सब ए बारात में एक रोजा रखना चाहिए या दो रखना चाहिए।
एक रोजा रखते हैं तो कौन सा दिन रखे दो रखते हैं तो 14 या 15 शाबान का रोजा रखे,क्या सिर्फ 15 शाबान का रोजा रख सकते हैं इन सारे सवाल का जवाब नीचे पड़े।
याद रखिए सबसे पहली चीज पूरे शाबान के महीने में कसरत के साथ रोजे रखने की आदत डालिए।
आका अलयही सलातो तस्लीम इस मुबारक महीने में कसरत के साथ रोजा रखते थे, 15 शाबान की जो तारीख है न ये एक फजीलत वाली तारीख है इसके हवाले से इब्ने मांझा में इक रिवायत मौजूद हैं 1388 मौलाए कायनात रजिअल्लाह ताला अन्हु फरमाते हैं की रसूलल्लाह सल्लल्लाह वालयही वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की जब पंद्रह शाबान की रात आए तो उस रात में कयाम करो और और दिन में रोजे रखो बेशक गुरुबे आफताब के बाद यानी सूरज डूबने के बाद अल्लाह ताला आसमानी दुनिया की तरफ़ तजल्लिफ फरमाता है, और फरमाता है है कोई मुझसे मगफिरत तलब करने वाला, मैं उसे बख्स दूं है कोई रोजी मांगने वाला, मैं उसे रोजी अता कर दूं है कोई परेशान हाल मैं उसे आफियत दूं, अल्लाह का ये फरमान फज्र तक जारी रहता है।
तो पंद्रह शाबान के रोजे की ये फजिलत मौजूद हैं
अब आपकी मर्जी चाहे तो शाबान के पूरे महीने में जितना चाहे उतना रोजे रख सकते हैं, और अगर आप एक दिन का रोजा रखना चाहते हैं तो पंद्रह शाबान के रोजे की फजीलत हदीस में मौजूद हैं पंद्रह शाबान के रोजे रख ले।
और अगर आप चाहे तो 14 और पंद्रह का शाबान का रोजा रख सकते हैं और अगर आप चाहे 15 और 16 शाबान का रोजा रख सकते हैं जैसा चाहें आप रोजा रख सकते हैं रोजा रखते हैं तो सवाब है एक रखेंगे तो एक सावाब है दो रखेंगे तो दो का सवाब है और कई रखेंगे तो कई का सवाब और अगर नहीं रहते हैं तो कोई गुनाह भी नहीं है इसलिए की ये नफली रोजे हैं नफ्ली रोजा रखना कोई फर्ज वाजिब नहीं है की उसके बेस पर गुनाह मिलेगा हां अगर आप रोजे रखते हैं तो सवाब जरुर मिलेगा